नवरात्री अष्टमीदिन के उत्सव पर इक नयी सोच और कदम
अपनी प्यारी बेटीयो के लिए
बेटी जब बडी होती है, इक उम्र के बाद वो स्त्री बनती है। तो अब में यहां ये बात करना चाहुगी के केसे? जब इक लड़की 12 या 14 साल की उम्र की होती है तब वो पीरियड्स या रज:स्वलामे होती हैI तब इक लड़की का फिर से नया जन्म होता है। पर इसे लेकर लोगों का नजरिया गलत है। कही जगह उन दिनों लड़की को घर के इक कोने में 3 दिन के लिए बिठा देते हैं I ना रसोई घर में जा सकती है, ना ही उन दिनों में वो खुलकर कहीं जा सकती है, या घुम सकती हैं । कयोंकि इस बात को कुछ गलत तरीके से लड़की के दिमाग में बिठा दिया जाता है तो उन दिनों में वो शारीरिक कम पर मानसिक रूप से ज्यादा बिमार महसूस करती है और इसके चलते उन दिनों में उनको नुकसान होता है। इस बात पर अपनी सोच किसे कहें परिवार में कयोंकि इस बात पर खुद माँ अपनी बेटी से खुलकर बात नहीं कर सकती तो फिर क्या करें? मानसिक तनाव और बढता है। शहर में रहने वाले माता पिता और लड़की के लिए मुश्किल नहीं है। पर आज भी गाँव में लड़कियों को इस बात पर बहुत परेशानी होती है। ये क्या है? क्यु होता है? इस बात का जवाब अब मिले तो कहा से? कया उपयोग करना चाहिए?, केसे इस्तमाल करना चाहिए? एसे में गलत चिज के इस्तमाल से बहुत नुकसान होता है।
हम तो बहुत ही सुविधा के साथ उन दिनों में जिते है फिर भी कहीं गुस्सा आता है, चिड जाते हैं। तो मुझे इक दिन ये बात दिमाग में आई कितनी लड़कियों को केसी तकलीफ़ों से गुजरना पड़ता होगा I
ओर तय किया जो गाँव है, जंगल का इलाका है वहां जा कर इस बात पर चर्चा करु उनकी सोच, तकलीफ़ों को जानकर सही तरीका समजाउ ओर उन्हें उन दिनों में भी वही होसला ओर नयी उड़ान भरने की हिम्मत मिले I
मैं वो बेटियों से मिली, जीवनकी बात एक दुसरे को बताई और बेटियों के चहेरे जो मुस्कान आई, खुशी आई, वो नवरात्री उत्सव मेरे लिए एक यादगार प्रसंग बन गया I
तो इक कदम बेटियों के लिए।
मेरा होसला मेरे खवाबों का आसमां
खुलकर जी यु ये जिंदगी
मेरे लिए है ये मेरा आसमां।😄🤗😍
Dedicate to Girls
Written by Me - Minaxi Purohit